ये दुनिया अगर मर भी जाए तो क्या है !
कल गुजरात के दहोद जिले में घटी एक वीभत्स घटना ने भीतर तक दहला दिया है। आपसी विवाद का बदला लेने के लिए छह लोगों ने अपहरण कर एक चलते वाहन में बेबस पिता की आंखों के आगे उसकी पंद्रह और तेरस साल की दो बेटियों के साथ सामूहिक बलात्कार किया। गंभीर हालत में दोनों बच्चियों का इलाज अस्पताल में चल रहा है।गुजरात में ही क्यों, यह घटना देश के किसी कोने में भी घट सकती है। घटती भी है। हमेशा से पुरुषों के बीच के संघर्ष की कीमत अपनी देह, आत्मा और स्वाभिमान के तौर पर ज्यादातर औरत ही चुकाती रही है। जबतक शत्रु के घर की स्त्रियों की इज्जत के परखच्चे न उड़ा दिए जायं, पुरुषों के विजय के दर्प और सुख अधूरे रह जाते हैं। ऐसी ख़बरें अखबार के किसी कोने में सिमट जाती हैं। न लिखने वाले की संवेदना जगती है और न पढ़ने वाले की। किसी को गुस्सा नहीं आता। कहीं कोई हंगामा बरपा नहीं होता। किसी को यह ख्याल भी नहीं आता कि ऐसी घटना उसकी बच्चियों के साथ घटे तो ख़ुद उसपर क्या गुजरेगी ? ऐसा नहीं है कि ऐसी घटनाएं आज के दौर की विकृतियाँ हैं। सदा से पुरुष अहंकार और वासना का चेहरा ऐसा ही रहा है। प्राचीन काल के युद्धों की कहानियां पढ़कर आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं जब विजेताओं द्वारा पराजित राज्य की संपति ही नहीं लूटी जाती थी, शत्रु राज्य की युवा स्त्रियों को घर से निकाल-निकाल कर कई-कई दिनों तक सामूहिक बलात्कार होते थे। तब विजेता का आदेश ही क़ानून होता था। आज देश और दुनिया में भी बलात्कार और स्त्री प्रताड़ना के खिलाफ़ कड़े से कड़े क़ानून हैं, लेकिन फर्क तब भी नहीं पड़ा है। शायद हम मर्दों की मानसिक बनावट में ही ईश्वर से कुछ त्रुटि हुई है। ऐसी त्रुटि जिसे हजारों साल में सैकड़ों अवतार और पैगंबर मिलकर भी नहीं सुधार सके।
क्या करें दिन-ब-दिन घातक, बेरहम और संवेदनाशून्य होती जा रही इस दुनिया का ? क्या अब इसे नष्ट नहीं हो जाना चाहिए ?
कल गुजरात के दहोद जिले में घटी एक वीभत्स घटना ने भीतर तक दहला दिया है। आपसी विवाद का बदला लेने के लिए छह लोगों ने अपहरण कर एक चलते वाहन में बेबस पिता की आंखों के आगे उसकी पंद्रह और तेरस साल की दो बेटियों के साथ सामूहिक बलात्कार किया। गंभीर हालत में दोनों बच्चियों का इलाज अस्पताल में चल रहा है।गुजरात में ही क्यों, यह घटना देश के किसी कोने में भी घट सकती है। घटती भी है। हमेशा से पुरुषों के बीच के संघर्ष की कीमत अपनी देह, आत्मा और स्वाभिमान के तौर पर ज्यादातर औरत ही चुकाती रही है। जबतक शत्रु के घर की स्त्रियों की इज्जत के परखच्चे न उड़ा दिए जायं, पुरुषों के विजय के दर्प और सुख अधूरे रह जाते हैं। ऐसी ख़बरें अखबार के किसी कोने में सिमट जाती हैं। न लिखने वाले की संवेदना जगती है और न पढ़ने वाले की। किसी को गुस्सा नहीं आता। कहीं कोई हंगामा बरपा नहीं होता। किसी को यह ख्याल भी नहीं आता कि ऐसी घटना उसकी बच्चियों के साथ घटे तो ख़ुद उसपर क्या गुजरेगी ? ऐसा नहीं है कि ऐसी घटनाएं आज के दौर की विकृतियाँ हैं। सदा से पुरुष अहंकार और वासना का चेहरा ऐसा ही रहा है। प्राचीन काल के युद्धों की कहानियां पढ़कर आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं जब विजेताओं द्वारा पराजित राज्य की संपति ही नहीं लूटी जाती थी, शत्रु राज्य की युवा स्त्रियों को घर से निकाल-निकाल कर कई-कई दिनों तक सामूहिक बलात्कार होते थे। तब विजेता का आदेश ही क़ानून होता था। आज देश और दुनिया में भी बलात्कार और स्त्री प्रताड़ना के खिलाफ़ कड़े से कड़े क़ानून हैं, लेकिन फर्क तब भी नहीं पड़ा है। शायद हम मर्दों की मानसिक बनावट में ही ईश्वर से कुछ त्रुटि हुई है। ऐसी त्रुटि जिसे हजारों साल में सैकड़ों अवतार और पैगंबर मिलकर भी नहीं सुधार सके।
क्या करें दिन-ब-दिन घातक, बेरहम और संवेदनाशून्य होती जा रही इस दुनिया का ? क्या अब इसे नष्ट नहीं हो जाना चाहिए ?
[फेसबुक से साभार]
©ध्रुव गुप्त
dhruva.n.gupta@gmail.com
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